#rippedmentallity #फटी_हुई_मानसिकता
#फटी_हुई_जीन्स
वैसे एक और कहानी याद आ रही है
एक गुरुकुल में दो शिष्य शिक्ष-दीक्षा ले रहे थे । एक दिन गुरु ने
उन्हें बुलाया और कहा आज आप बगल के गांव जाएंगे और भिक्षा लेकर आएंगे , मेरे पास जितना था सीखाने को सब सीखा दिया है । वही मेरी दक्षिणा होगी । दोनों सुबह सुबह निकल पड़े । गांव जाने के लिए एक बरसाती नदी पार करनी होती थी । वो नदी पहुंचे तो देखा नदी में खूब तेज धारा में पानी आ गया था , कोई नाव भी नहीं थी । पास में एक महिला भी थी , उसने विनती की कि उसे नदी पार करा दे, इतनी तेज धारा में जाने की हिम्मत नही हो रही है । एक शिष्य ने बोला मेरे गुरु ने महिला से दूर रहने को सिखाया है हमलोग हाथ भी नहीं लगा सकते । आप किन्ही और के आने का इंतजार कर लें । महिला ने फिर विनती करते हुए बोली पता नहीं कहीं दोपहर ना हो जाए यहीं इंतजार करते करते , शहर जाकर लौटना भी होगा । दूसरे शिष्य ने महिला को गोद में उठाकर नदी पार करा दी । पहला शिष्य अपने मित्र से नाराज हो गए । शाम को वापस गुरु के पास वापस आने पर पूरे दिन की कहानी बताई ।
गुरु ने पहले शिष्य को कहा ही अभी तुम्हारी शिक्षा पूरी नहीं हुई है अभी एक साल तुम्हें रहना होगा और दूसरे शिष्य को आशीर्वाद देते हुए जाने की आज्ञा दी । पहला शिष्य आश्चर्य और दुख से पूछा - गुरुवर ! मुझे तो आपके पढ़ाए सभी कंठस्थ हैं और मैं तो आज आपके आज्ञा से महिला को देखा तक भी नहीं जबकि उसने उसे गोद में उठाकर नदी पार कराया । गुरु ने कहा - उसने महिला को नदी के इक तीर पर गोद में उठाकर दूसरे तीर पर छोड़ दिया पर तुमने उसे उस नदी के तीर से लेकर अभी तक अपने दिमाग में रखे हुए हो ।
रामायण हमें जनक/विदेह होना सिखाती है - कर्म से परे होना ।
खैर मैं भटक गया मुद्दे से । फटी हुई पर वापस आते हैं - वैसे देश में अभी फटी हुई बहुत कुछ है या फिर मेरे भीतर भी ।
फटा जो देखन मैं चला, फटा ना मिलिया कोई ।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे फटा ना कोय ।।😎
बस बहुत हुई ज्ञान वाणी | चले खाना दाना पकाया जाए | धन्यवाद इस सोशल मीडिया को - जो हम भी कह लेते हैं | और हाँ बुरा लगा हो - कह दीजियेगा नीचे | दिल पर मत ले लीजियेगा |
एक गुरुकुल में दो शिष्य शिक्ष-दीक्षा ले रहे थे । एक दिन गुरु ने
उन्हें बुलाया और कहा आज आप बगल के गांव जाएंगे और भिक्षा लेकर आएंगे , मेरे पास जितना था सीखाने को सब सीखा दिया है । वही मेरी दक्षिणा होगी । दोनों सुबह सुबह निकल पड़े । गांव जाने के लिए एक बरसाती नदी पार करनी होती थी । वो नदी पहुंचे तो देखा नदी में खूब तेज धारा में पानी आ गया था , कोई नाव भी नहीं थी । पास में एक महिला भी थी , उसने विनती की कि उसे नदी पार करा दे, इतनी तेज धारा में जाने की हिम्मत नही हो रही है । एक शिष्य ने बोला मेरे गुरु ने महिला से दूर रहने को सिखाया है हमलोग हाथ भी नहीं लगा सकते । आप किन्ही और के आने का इंतजार कर लें । महिला ने फिर विनती करते हुए बोली पता नहीं कहीं दोपहर ना हो जाए यहीं इंतजार करते करते , शहर जाकर लौटना भी होगा । दूसरे शिष्य ने महिला को गोद में उठाकर नदी पार करा दी । पहला शिष्य अपने मित्र से नाराज हो गए । शाम को वापस गुरु के पास वापस आने पर पूरे दिन की कहानी बताई ।
गुरु ने पहले शिष्य को कहा ही अभी तुम्हारी शिक्षा पूरी नहीं हुई है अभी एक साल तुम्हें रहना होगा और दूसरे शिष्य को आशीर्वाद देते हुए जाने की आज्ञा दी । पहला शिष्य आश्चर्य और दुख से पूछा - गुरुवर ! मुझे तो आपके पढ़ाए सभी कंठस्थ हैं और मैं तो आज आपके आज्ञा से महिला को देखा तक भी नहीं जबकि उसने उसे गोद में उठाकर नदी पार कराया । गुरु ने कहा - उसने महिला को नदी के इक तीर पर गोद में उठाकर दूसरे तीर पर छोड़ दिया पर तुमने उसे उस नदी के तीर से लेकर अभी तक अपने दिमाग में रखे हुए हो ।
रामायण हमें जनक/विदेह होना सिखाती है - कर्म से परे होना ।
खैर मैं भटक गया मुद्दे से । फटी हुई पर वापस आते हैं - वैसे देश में अभी फटी हुई बहुत कुछ है या फिर मेरे भीतर भी ।
फटा जो देखन मैं चला, फटा ना मिलिया कोई ।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे फटा ना कोय ।।😎
बस बहुत हुई ज्ञान वाणी | चले खाना दाना पकाया जाए | धन्यवाद इस सोशल मीडिया को - जो हम भी कह लेते हैं | और हाँ बुरा लगा हो - कह दीजियेगा नीचे | दिल पर मत ले लीजियेगा |