Friday, November 15, 2019

वशिष्ठ नारायण सिंह

#JustAThought 
वशिष्ठ नारायण सिंह  जी को भावपूर्ण श्रध्दांजलि  !
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सोशल मीडिया पर वायरल होती #वशिष्ठ बाबू की मौत की सुर्खियाँ अनायास ही स्टीफन हॉकिंग की याद दिला दी , wheel chair पर बैठा लुंज -पुंज मरनासन्न अंग्रेज | यूँ तो मैं व्यक्तिगत तौर पर "ऐसा हुआ होता तो .... " वाली theory पर भरोसा तो नहीं करता हूँ , सो मैं कोई कल्यना नही करता की यदि अपने #वशिष्ठ बाबू इंग्लैण्ड में पैदा हुए होते तो उनकी हालत ऐसी होती .. वैसी होती | पर क्या वास्तव में हम इतने संवेदनहीन हैं : ( हम तो western कल्चर को गरियाते हैं की उसने हमें ये कचरा दिया वो कचरा दिया (वैसे ये भी हमें ध्यान रहना चाहिए की हमने लिया ) - पर उस तथा-कथित कीचड़ वाली संस्कृति में कमल-रूपी विचार कहाँ से से खिल गया की हमें इस स्टीफन हॉकिंग को बचाना है | मैं माफ़ी चाहूँगा पूरब /पश्चिम के कट्टर समर्थकों से यदि आपकी भावना को आहत किया हूँ | 

मैं ना तो western कल्चर का अंधभक्त हूँ ना ही अपने महान भारतीय संस्कृति का विरोधी | मैं तो समर्थक हूँ जहाँ जो अच्छा है , रख लिया जाये ; अच्छा से मतलब जो मानवीय हो | मैं नब्बे के दशक में बिहार में पला - बढ़ा बिहारी हूँ , मुझे अच्छे से याद आ रही है की कितनी भी कम तो पांच या छ: बार (अलग - अलग सालों में अलग -अलग समय पर) अखबार के पहले पन्ने के नीचे वाले हिस्से या पीछे वाले पन्ने पर #वशिष्ठ बाबू के इलाज और हालत को लेकर सरकारी उदासीनता की खबरें मैंने पढ़ी है | नही पता कितनी सच्चाई है या सिर्फ अफवाह ही ; मैंने तो अपने बचपने में यह भी सुना था की -- 
" अमेरिका ने जान-बुझ कर इन्हें पगला दिया है | क्यूंकि इन्होने वहां रुकने से इंकार कर दिया था | " 
आज जब हम फिर से सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं , क्या हमें खुद पर भी सवाल नहीं करना चाहिए ? क्या हमारी खुद की उदासीनता भी उतनी ही दोषी नही है ? इन सब का समाधान यही है की हमें बात करना 🗣 शुरू करना होगा - लोगों से और लोगों के बारे में ही 👥 | हमें शुरुआत अपने घर से ही करनी होगी | अपने बच्चों को अपने भाई के बारे में , अपने चाचा के बारे में , अपनी बुआ के बारे में बताना शुरू करना होगा , वो बेहतर अधिकारी होंगे , वो बेहतर किसान होंगे , वो बेहतर होंगे किसी और विधा में | हम आज उदासीन हैं अपने ही परिवार के प्रति , अपने ही समाज के प्रति फिर हम कैसे अपेक्षा रखते हैं की एक संस्था (सरकार - हमारी ही चुनी हुई एक संस्था है , हमारी ही प्रतिबम्ब है ) याद रख ले जाए |

यदि हमने अब भी स्वयं को नहीं चेताया - तो फिर किन्ही के उपेक्षित मौत पर फिर से हम भी चिल्लायेंगे , सरकार भी चिलाएगी और चिल्लम-चिल्ली चलते रहेगा | 


#सोचना तो पड़ेगा  
#बदलना तो स्वयं को ही पड़ेगा