Saturday, December 21, 2019

शिक्षा और स्वामी विवेकानंद

 



विवेकानंद जी के शब्दों में - 
"किसी व्यक्ति विशेष के सीखने की कोई सीमा नही है, पर हम यह नहीं कह सकते कि वह कितने समय में सीखेंगे या कितना सीखेंगे ।"
परन्तु आज हर सीखाने वाला (शिक्षक, माता-पिता ) यह तय करके सीखाता है कि इसे यह अमुक घंटे या दिनों में सीख जाना चाहिए । और जब सीखने वाला नही कर पाता है तो गधा और नालायक जैसे तमगे के साथ कार्यक्रम बन्द । मारने - पीटने तक का उपक्रम भी कर लेते हैं । और फिर इस पूरे व्यवस्था में सीखने और सीखाने वाला दोनों ही हताश, परेशान और निराश । बड़े स्तर पर भी देखें तो आज के पूरी शिक्षा व्यवस्था में भी सीखने वाले को तय करने का कहीं जगह नही है , सब पहले से तय है कि यह कोर्स 6 महीने का है और वह 2 साल का ।



कुछ और उद्धरण --- 

मेरी निजी राय में "जीवन-संग्राम" को "जीवन-यात्रा" से बदलकर पढ़ा जाना चाहिए। 


माता-पिता को  स्वामी विवेकानंद की सलाह  - बच्चों के साथ सकरात्मक विचार और व्यवहार |

  
शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य - "मनुष्य" निर्माण ही हो ।


शारीरिक दंड पर स्वामी विवेकानंद के विचार 


शिक्षक को स्वामी विवेकानंद की राय 






#सोचना_तो_पड़ेगा  
#शिक्षा 
#स्वामी_विवेकानंद

Friday, November 15, 2019

वशिष्ठ नारायण सिंह

#JustAThought 
वशिष्ठ नारायण सिंह  जी को भावपूर्ण श्रध्दांजलि  !
🌸🌸

सोशल मीडिया पर वायरल होती #वशिष्ठ बाबू की मौत की सुर्खियाँ अनायास ही स्टीफन हॉकिंग की याद दिला दी , wheel chair पर बैठा लुंज -पुंज मरनासन्न अंग्रेज | यूँ तो मैं व्यक्तिगत तौर पर "ऐसा हुआ होता तो .... " वाली theory पर भरोसा तो नहीं करता हूँ , सो मैं कोई कल्यना नही करता की यदि अपने #वशिष्ठ बाबू इंग्लैण्ड में पैदा हुए होते तो उनकी हालत ऐसी होती .. वैसी होती | पर क्या वास्तव में हम इतने संवेदनहीन हैं : ( हम तो western कल्चर को गरियाते हैं की उसने हमें ये कचरा दिया वो कचरा दिया (वैसे ये भी हमें ध्यान रहना चाहिए की हमने लिया ) - पर उस तथा-कथित कीचड़ वाली संस्कृति में कमल-रूपी विचार कहाँ से से खिल गया की हमें इस स्टीफन हॉकिंग को बचाना है | मैं माफ़ी चाहूँगा पूरब /पश्चिम के कट्टर समर्थकों से यदि आपकी भावना को आहत किया हूँ | 

मैं ना तो western कल्चर का अंधभक्त हूँ ना ही अपने महान भारतीय संस्कृति का विरोधी | मैं तो समर्थक हूँ जहाँ जो अच्छा है , रख लिया जाये ; अच्छा से मतलब जो मानवीय हो | मैं नब्बे के दशक में बिहार में पला - बढ़ा बिहारी हूँ , मुझे अच्छे से याद आ रही है की कितनी भी कम तो पांच या छ: बार (अलग - अलग सालों में अलग -अलग समय पर) अखबार के पहले पन्ने के नीचे वाले हिस्से या पीछे वाले पन्ने पर #वशिष्ठ बाबू के इलाज और हालत को लेकर सरकारी उदासीनता की खबरें मैंने पढ़ी है | नही पता कितनी सच्चाई है या सिर्फ अफवाह ही ; मैंने तो अपने बचपने में यह भी सुना था की -- 
" अमेरिका ने जान-बुझ कर इन्हें पगला दिया है | क्यूंकि इन्होने वहां रुकने से इंकार कर दिया था | " 
आज जब हम फिर से सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं , क्या हमें खुद पर भी सवाल नहीं करना चाहिए ? क्या हमारी खुद की उदासीनता भी उतनी ही दोषी नही है ? इन सब का समाधान यही है की हमें बात करना 🗣 शुरू करना होगा - लोगों से और लोगों के बारे में ही 👥 | हमें शुरुआत अपने घर से ही करनी होगी | अपने बच्चों को अपने भाई के बारे में , अपने चाचा के बारे में , अपनी बुआ के बारे में बताना शुरू करना होगा , वो बेहतर अधिकारी होंगे , वो बेहतर किसान होंगे , वो बेहतर होंगे किसी और विधा में | हम आज उदासीन हैं अपने ही परिवार के प्रति , अपने ही समाज के प्रति फिर हम कैसे अपेक्षा रखते हैं की एक संस्था (सरकार - हमारी ही चुनी हुई एक संस्था है , हमारी ही प्रतिबम्ब है ) याद रख ले जाए |

यदि हमने अब भी स्वयं को नहीं चेताया - तो फिर किन्ही के उपेक्षित मौत पर फिर से हम भी चिल्लायेंगे , सरकार भी चिलाएगी और चिल्लम-चिल्ली चलते रहेगा | 


#सोचना तो पड़ेगा  
#बदलना तो स्वयं को ही पड़ेगा

Sunday, September 8, 2019

हैदराबाद की गणेशोत्सव

संस्कृति के कथानकों और कथाओं को जीवंत करते ये कलाकार और उनकी भाव भंगिमाएं , ढोलको की high pitched थाप और मृदंग की गूंज सारे शरीर में एक अजीब सी सकरात्मक आवेश (charge) और ऊर्जा की कम्पन पैदा करती है, पर इसके साथ भौंडे और अश्लील नृत्य / थिरकन मन को उद्वेलित भी करती है । 





क्यों कला और संस्कृति के किसी विधा को अश्लीलता और उच्छृंखलता के सहारे की जरूरत पड़ रही है? या फिर हमने इस अश्लीलता और उच्छृंखलता को अपनी जरूरत बना ली है ? और क्या, कला को भला किसी के सहारे की क्या जरूरत आन पड़ी ! 





आज उत्तर भारत के त्योहारों में भी यही हावी है - पूजा पण्डालों और विसर्जनों में बॉलीवुड के नंबर- सॉन्ग्स ही पहली और अंतिम पसंद रह गई है। 

खैर छोड़िए - जब तक मन उन ढोलकों के थाप , दुर्गा, काली और शिव के ताण्डव - नृत्य में खोया था , मन शांत था । एक प्रश्न जरूर था कि मेरे भीतर की बुराइयों के विनाश के लिए दुर्गा और काली कब आएगी । कहीं दूर से अभी भी आ रही है वो थाप । विशाल है अपना यह देश, विशाल है अपनी संस्कृति । 

   


#Ganeshotsav #Hyderabad #Culture #उत्सव #त्यौहार #Celebration #AmazingIndia

Saturday, June 22, 2019

मेरी दादी की डाँट

आज Whatsapp पर एक मेसेज आया था -- 
हमारी दादी नानी की अनपढ़ पीढ़ी जो हम सबको बहुत डाँटती थी , कहती थी “नल धीरे खोलो... पानी बदला लेता है! अन्न नाली में न जाए, नाली का कीड़ा बनोगे! सुबह-सुबह तुलसी पर जल चढाओ, बरगद पूजो, पीपल पूजो, आँवला पूजो, मुंडेर पर चिड़िया के लिए पानी रखा कि नहीं? हरी सब्जी के छिलके गाय के लिए अलग बाल्टी में डालो। जाओ ये रोटी गली वाले कुत्ते को दे आओ ।" .......... 
मेरे मन में यही विचार आया - "वो अनपढ़ होकर भी ज्ञानी थीं , और मैं विज्ञानी होकर भी अज्ञानी रह गया ।" इन सब को ना मानने का काफी मजबूत हथियार था हमारे पास - ये सब ढकोसला है , अंधविस्वास है । माना कि पीपल पूजना अंधविश्वास था उनका, विज्ञान नही पता था उन्हें की पीपल ऑक्सीजन की खान है । पर मैंने ये कैसा विज्ञान पढ़ा जिसने ये नही सिखाया की पीपल काटना कितना खतरनाक होगा । काश मैंने भी विज्ञान ना पढ़ा होता - खाने में प्लास्टिक और खतरनाक जहर तो ना मिलाया होता । पेडों को समाप्त कर गर्मी को इस खतरनाक स्तर तक तो ना पहुँचाया होता । पानी के स्तर को इस स्तर तक तो ना पहुँचा दिया होता । काश मैंने भी विज्ञान ना पढ़ा होता ।
 
मुझे खुद से जुड़ी एक प्रसंग याद आ गयी । कोई आज से 20 साल पहले मुझे मेरी दादी ने ख़तरनाक वाली डाँट लगाई थी -
"हथवा में भुर है एखनी के , जेतना के खा है ना कि ओतना तो गिरावा है ।..... bla bla .. " 
एक लंबा सा भाषण । मुझे सारा चुन-चुन कर उठा कर खाना पड़ा | मैं आज उनके भाषण के साथ उनके दिल की टीस ( अन्न के अपमान के कारण ) को महसूस कर सकता हूँ । ये टीस हो भी क्यों ना , बीज बोने से लेकर अनाज काटने और फिर पकाने तक के आठ महीने का सारा मेहनत तो उनका खुद का था । 
आज की माँओं को भी फर्क नही पड़ता क्योंकि ready to eat packets से 5-10 मिनट में भोजन तैयार । 
उत्पादन में लगने वाला मेहनत का अंदाज भी नहीं है , सिर्फ पैसों की क़ीमत पता है । 
आज की पढ़ाई ये सिखाती है - नीचे गिरा हुआ अन्न गंदा हो गया, उसे मत खाओ। क्या हो गया संत तिरुवल्लुवर की पानी से भरी कटोरी और सुई?  हम ये क्यों नहीं सिखाते की नीचे गिराना गलत है !

Sunday, June 16, 2019

Happy fathers day Papa

A lot of Gratitude Papa Jee🙏🙏 
What am I today is only because of you - Your discipline, your trust, your teaching, your attitude towards money & articles, your inclination towards spirituality. 

You have always inspired me as being an all-time learner. I am always proud of you.


Sunday, May 26, 2019

माँ - बाप के निर्णय

यह हर पिता चाहता है कि सन्तान उनके आज और भविष्य के निर्णय में साझीदार बने ! लेकिन यह क्या ! वह तो उनके भूतकाल के निर्णय को भी अपने भौतिक लाभ - हानि के तराजू पर तोलकर उन निर्णयों पर प्रश्न चिन्ह लगाने लगा है ! जब वो था भी नही, उस समय के निर्णय को भी उसने सही और गलत का दर्जा दे दिया है , वो भी दूसरे के सामने ही नहीं अपने दिल में भी । उसे तो पता भी नही है की यह सारा निर्णय भी तो इसी के लिए था, पर पता करने की कोशिश भी कहाँ की ! और यदि कोशिश कर भी लेता तो भला पता कर कैसे पाता ! कैसे उन अनुभवो को समझ पाता जो उस पिता के दिल में था, कौन उसे बता पाता, शायद वो पिता भी अब उन अनुभवों को हु-ब-हु नहीं बता पाएगा । उसे तो स्वयं बाप होना होगा - उस अनुभव को जीने के लिए ! जब बीस वर्षों बाद उसके सन्तान उसके निर्णयों पर विश्लेषण कर रहे होंगे तब शायद वो आज के दिनों को फिर से याद कर पाएगा ।