
विवेकानंद जी के शब्दों में -
"किसी व्यक्ति विशेष के सीखने की कोई सीमा नही है, पर हम यह नहीं कह सकते कि वह कितने समय में सीखेंगे या कितना सीखेंगे ।"
परन्तु आज हर सीखाने वाला (शिक्षक, माता-पिता ) यह तय करके सीखाता है कि इसे यह अमुक घंटे या दिनों में सीख जाना चाहिए । और जब सीखने वाला नही कर पाता है तो गधा और नालायक जैसे तमगे के साथ कार्यक्रम बन्द । मारने - पीटने तक का उपक्रम भी कर लेते हैं । और फिर इस पूरे व्यवस्था में सीखने और सीखाने वाला दोनों ही हताश, परेशान और निराश । बड़े स्तर पर भी देखें तो आज के पूरी शिक्षा व्यवस्था में भी सीखने वाले को तय करने का कहीं जगह नही है , सब पहले से तय है कि यह कोर्स 6 महीने का है और वह 2 साल का ।
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