Tuesday, October 21, 2014

"DEEPAWALI KA SANDESH"

This is from my mail that I received today from my Father as "Deepawali ka Sandesh" -


हर दिल में प्रेम का दीया जलाते चलो | एक दीपक की बाती को जलने के लिए उसे तेल में डूबा होना चाहिए, साथ ही तेलके बाहर भी रहना चाहिए। यदि बाती तेल में पूरी डूब जाए तो वह प्रकाश नहीं दे सकती। जीवन भी दीपक की बाती के समान है, हमें संसार में रहते हुए भीउसके ऊपर निष्प्रभावित रहना होता है। अगर तुम पदार्थ जगत में डूबे हुए हो तो जीवन में आनंद और ज्ञान नहीं ला पाओगे। संसार में रहते हुए भी,सांसारिक माया के ऊपर उठ हम आनंद और ज्ञान के ज्योति प्रकाश बन सकते हैं। इस प्रकार ज्ञान के प्रकाश के प्रकट होने का उत्सव ही दिवालीहै। दीपावली बुराई पर अच्छाई की, अंधकार पर प्रकाश की और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का त्योहार है। इस दिन घरों में की जाने वाली रोशनी न केवल सजावट के लिए होती है, बल्कि वह जीवन के गहरे सत्य को भी अभिव्यक्त करती है।हरेक दिल में प्रेम और ज्ञान की लौ प्रज्ज्वलित करें और सभी के चेहरों पर सच्ची मुस्कान लाएं। 
प्रत्येक मनुष्य में कुछ सद्गुण होते हैं। आपके द्वारा प्रज्जवलित प्रत्येक दीपक इसी का प्रतीक है। कुछ में धैर्य होता है, कुछ में प्रेम,शक्ति, उदारता तो अन्य में लोगों को साथ मिला कर चलने की क्षमता होती है। आप में स्थित अव्यक्त गुण दीपक के समान हैं। केवल एक ही दीप जला कर संतुष्ट न हों; हजारों दीप प्रज्ज्वलित करें, क्योंकि अज्ञान के अंधकारको दूर करने के लिए अनेक दीपक जलाने होंगे। ज्ञान की ज्योति प्रज्जवलित होने से आत्मस्वरूप के सभी पहलू जाग्रत हो जाते हैं। और उनका जाग्रत और प्रकाशित हो जाना ही दीपावली है।
जीवन का एक और गूढ़ रहस्य दिवाली के पटाखों के फूटने में है। जीवन में कईबार आप पटाखों के समान अपनी दबी हुई भावनाओं, कुंठाओं और क्रोध के कारण अति ज्वलनशील रहते हैं- बस फूटने के लिए तैयार। अपने राग-द्वेष, घृणा आदि को दबा कर फटने की उस स्थिति तक पहुंच जाते हैं कि अब फूटे कि तब। पटाखे फोड़ने की प्रथा हमारे पूर्वजों द्वारा लोगों की दबी हुई भावनाओं से मुक्ति पाने का एक सुंदर मनोवैज्ञानिक उपाय है। जब आप बाहर विस्फोट देखते हैं तो आपके अंदर भी वैसी ही कुछ अनुभूति होती है। विस्फोट के साथ प्रकाशपुंज भी होता है। आप अपनी दबी हुई भावनाओं से मुक्त होते हैं और भीतर शांति का उदय होता है। अपने नित नूतन और चिर पुरातन स्वभाव का अनुभव करने के लिए इन दबी हुईभावनाओं से मुक्त होना अति आवश्यक है। दीपावली का अर्थ है वर्तमान क्षण में जीना, अत: अतीत का पछतावा और भविष्य की चिंता छोड़ कर वर्तमान क्षणमें जीएं।
दीपावली की मिठाइयों और उपहारों के आदान-प्रदान के पीछे भी एक मनोवैज्ञानिक पहलू है। पुरानी गलतफहमी की कड़वाहट को छोड़ कर संबधों को मधुर बनाते चलो। सेवा भाव के बिना हर उत्सव अधूरा है। परमात्मा ने जो कुछभी हमें दिया है, उस प्रसाद को हमें सबके साथ बांटना है, क्योंकि जितना बांटेंगे, उतनी ही उसकी कृपा और बरसेगी। सही मायने में यही दीपावली काउत्सव है। उत्सव का और एक अर्थ है- अपने मतभेदों को मिटा कर अद्वैत आत्मा की ज्योति से अपने सच्चिदानंद स्वरूप में विश्राम करना। दिव्य समाज कीस्थापना के लिए हर दिल में ज्ञान व आनंद की ज्योति जलानी होगी। और वह तभी संभव है, जब सब एक साथ मिल कर ज्ञान का उत्सव मनाएं।बीते हुए वर्ष के झगड़े-फसाद और नकारात्मकताओं को छोड़ कर अपने भीतर उदित हुए ज्ञान पर प्रकाश डाल कर एक नई शुरुआत करना ही दीपावली है। जब सच्चा ज्ञान उदित होता है, तब उत्सव होता है। उत्सव में अधिकतर हम अपनी सजगताया एकाग्रता खोने लगते हैं। उत्सव में सजगता बनाए रखने के लिए हमारे ऋषियों ने प्रत्येक उत्सव को पावन बना कर पूजा विधियों के साथ जोड़ दिया।दिवाली का आध्यात्मिक पहलू उत्सव में गहराई लाता है। प्रत्येक उत्सव में अध्यात्म होना चाहिए, क्योंकि अध्यात्म के बिना उत्सव छिछला होता है। जो ज्ञान में नहीं हैं, उनके लिए वर्ष में एक बार ही दिवाली आती है, किंतुजो ज्ञानी हैं, उनके लिए प्रत्येक दिन, प्रतिक्षण दिवाली है। इस दिवाली को ज्ञान के साथ मनाएं और मानवता की सेवा करने का संकल्प लें। धन की नहीं, मन की पूजा । पांच दिन के दिवाली उत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है व समापन भैया दूज पर होता है। भारतीय कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धन की देवी के उत्सव का प्रारंभ होने के कारण इस दिन को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। धनतेरस को धन त्रयोदशी व धन्वंतरि त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लक्ष्मी जी के स्वागत के लिएअपने घर के मुख्य द्वार पर रंगोली बनाने के साथ ही महालक्ष्मी के दो छोटे—छोटे पदचिह्न् लगाए जाते हैं।
वैसे धनतेरस के दिन दीपोत्सव का पहलादीया जलाना भी शुभ माना जाता है।धनतेरस के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। इसमें से एक प्रमुख कथा है-हीमा नाम के एक राजा के पुत्र की कुंडली में विवाह के चौथे दिन सर्प के काटने के कारण मृत्यु का योग था। राजा ने अपना वंश आगे बढ़ाने के लिएबेटे का विवाह कर दिया, परंतु जब उसकी पत्नी को यह बात पता चली तो शादी के चौथे दिन उसने अपने कमरे के चारों तरफ खूब रंग-बिरंगी रोशनी कर दी।सोने—चांदी के आभूषण व सिक्के मुख्य द्वार पर बड़े ढेर की तरह लगा दिए, ताकि कोई अंदर न आ सके और पति को नींद न आए, इसलिए वे सारी रात उसेधार्मिक और प्रेरणादायक कहानियां सुनाती रही। रात में जब मृत्यु के देवता यमराज सांप के रूप में उसके पति को डसने आए तो आभूषणों की चकाचौंध और रंग-बिरंगी रोशनियों की चमक के कारण उनको कुछ भी दिखाई नहीं दिया। वेकमरे में प्रवेश नहीं कर पाए और खाली हाथ लौट गए। एक पतिव्रता पत्नी द्वारा मृत्यु के द्वार से अपने पति की मौत को लौटा देने के कारण धनतेरसके इस दिन को ‘यम दीपदान’ से भी जानते हैं।
ऐसी भी मान्यता है कि पूरी रात आटे का दीया बना कर उसमें जोत जलाने कोपरिजनों के जीवन का रक्षक माना जाता है। वैसे आयुर्वेद शास्त्र की उत्पत्ति भी इसी दिन मानी गई है। पांच दिन के दीपावली महोत्सव का पहलात्योहार धनतेरस ही है, इसलिए इसका बहुत महत्व है, क्योंकि किसी भी पूजा, उत्सव की शुरुआत जितनी अच्छी और विधि-विधान से होगी, उसका आशीर्वाद उतनाही प्रभावशाली व योगकारक होना निश्चित है। हमारे शास्त्रों में भी बार-बार यही वर्णन किया गया है कि भगवान धन से नहीं, सच्ची भावना से प्रसन्न होते हैं।