This is the mail that I received from my Father as "Dashare ka Sandesh"
today -
विजयदशमी क्या है ?
विजयदशमी वस्तुतः विजय का त्योहार
है।किस पर विजय ? रामजी ने रावण,जो काम का प्रतीक है,कुंभकर्ण
जो क्रोध का प्रतीक है और मेघनाद जो लोभ का प्रतीक है-को मार कर इनके चंगुल
में फंसी हुई सीता यानि अपनी चेतना को छुड़ाया था। आप राम हैं और आपकी
चेतना सीता है । आपकी सीता रूपी चेतना रावण , कुंभकर्ण और मेघनाद
रूपी काम,क्रोध और लोभ के चंगुल में फंस गई है। जब
राम की तरह आप इसे मुक्त कर सके तो आप भी विजयदशमी का रसस्वाद ले
सकेंगे ।
ध्यान दें
की आखिर सीता रावण के हाथ में क्यूँ पड़ गई थी - स्वर्ण मृग के आकर्षण में
पड़कर ।जब जानकी ने स्वर्ण मृग को देखा तो वे स्वर्ण मृग की कामना करने
लग गयी । फलतः वह रावण रूपी कामना के चँगुल में पड़ गई और
काम ने उन्हें अपहृत कर लिया ।
आप भी अगर विजयदशमी के विजय पर्व का आनंद लेना चाहते हैं तो राम की तरह
शाक्तिशाली,ओजस्वी-तेजस्वी बनें। राम की तरह ज्ञानी बनकर आप रावण रूपी
काम, कुम्भकर्ण रूपी क्रोध और मेघनाद रूपी लोभ संहार करके अपनी चेतना को
छुड़ा कर अपना बना लें। यही विजयदशमी है ।
दशहरे का रहस्य
विजयदशमी को दशहरा भी कहते हैं । जैसे राम ने दस सिर वाले रावण को
मारकर सीता जी को छुड़ाया था , वैसे ही आपको भी दस सर वाले रावण का
संहार करना है । वो दस सिर हैं - काम, क्रोध, लोभ, मोह, आषा ,
तृष्णा , मद, मत्सर राग और द्वेष | राम जी बार बार सिरों को काटते और वो फिर वापस जाते । एक अवगुण पर विजय
प्राप्त करोगे तो दूसरा अवगुण आपकी गर्दन दबोचेगा , दूसरे पे विजय प्राप्त
करोगे तो तीसरा छाती पे चढ़ बैठेगा । जैसे रावण का प्राण उसकी नाभि में था
वैसे ही इन सभी दोष दुर्गुणों का प्राण अज्ञान में बसता है । जब तीर
रावण की नाभि में लगता है तो वो दसों सिरों के साथ लुढक जाता है
। सो इस दशहरे के पर्व में अज्ञान को धराशायी कर
इन दस अवगुणों का अपने अंदर से नाश करना है।